Friday, April 23, 2010

ऐ कलम

ऐ कलम तू चल जा

दिखा दे अपनी अहमियत

मेरे भी लेख को रोशन कर जा

ऐ कलम तू चल जा

मै भी बन जाऊ कवी

पढ़ कर लोग बजावे ताली

क्या तू बहरा है

जो तू अब भी ठहरा है

ओ अकडू थोडा सा तो चलजा

मेरे खातिर कुछ तो करजा

यूं तुम्हे उठाये लोगों को देख

मन मेरा भी करता है

की मै भी तुम्हे उठाऊ

महज जिंदगी के दो एक पहलू

पंक्ति बद्द सजाऊ

ऐ कलम तू चल जा

दिखा दे अपना जलवा

मै भी बन जाऊ कवी

बैठ कही मफिल में

मै भी शोर मचाऊ

बार बार पंक्तियों को

समक्ष लोगों के दोहराऊ

कवियों के इन गिनती में

मै भी जोड़ा जाऊ

ऐ कलम तू चल जा