हम उन बातॊं कॊ याद करेंगें जॊ हम अक्सर भुला दिया करते हैं। हम याद करेंगं उनकॊ जॊ यादॊ से ताजा हॊते है हम बात करेंगे उनकी जॊ यादॊं में ही खॊये रहते है
Thursday, September 4, 2008
व्यथा एक परिवार का
व्यथा एक परिवार का
घरसड़ी गॉव में रामअवतार नाम का एक किसान रहता था। जिसके दो पुत्र और एक पुत्री थी। बड़े पुत्र का नाम मालदेव और छोटे का नाम अम्बीका था। मालदेव कि रुचि सुरु से ही लट्ठबाजी में थी। वह जब बड़ा हुआ तो बहुत मशहुर लट्ठबाजी बना, मशहुर होने के कारण वह हमेंसा किसी न किसी लट्ठबाजी में हीस्सा लेता रहता था। जब रामअवतार नें यह देखा कि मालदेव अब काफी बड़ा हो गया है। तब उसने उसकी शादी वहीं पास के गॉव में करवा दी। रामअवतार अपने परिवार के साथ ज्यादा दिन ना रह सका, बड़े बेटे की शादी के एक वर्ष के बाद ही परलोक सीधार गया। रामअवतार के सारे बच्चे अनाथ हो गये, क्यों कि उनसब की मॉ पहले ही भगवान को प्यारी हो गयी थी। अब छोटा भाई अम्बीका जो अभी मात्र पॉच वर्ष और छोटी बहन रुचकी जो तीन वर्षों की ही थी।उनकी देख रेख की जिम्मेदारी अब मालदेव पर आगयी थी। मालदेव की पत्नी भी अपने देवर, ननद को अपने बच्चो जैसा प्यार देने लगी, जब कभी वो मायके जाती तो उन्हे भी अपने साथ ले जाती। दोनो बच्चे खुश थे, क्यों कि उन्हे भाभी के रुप में मॉ मिल गयी थी। समय बीतता गया और मालदेव के विवाह को पॉच वर्ष हो गए लेकिन उन्हे अबतक कोई सन्तान नही हुई थी। और घर में दो छोटे-छोटे भाई बहन होने के वजह से उन्हे अपने सन्तान की कमी खलती भी नही थी। जिससे उनका जीवन खुशी से कटता जा रहा था, कि अचानक एक दिन मालदेव के पत्नी का स्वास्थ कुछ ज्यादा खराब हो गया, मालदेव ने बहुत से वैध हकीमों से इलाज करवाया, लेकिन पत्नी स्वस्थ ना हो सकी, और आधे महीने में ही वो सब परिजनो को छोड़ कर चल बसी। उस दिन मानों दोनो बच्चो पर बज्र सा टुट गया था। एक बार वो फीर से अनाथ हो गए थे। बच्चे सुबह शाम भाभी को याद कर रोते, कभी-कभी तो ऐसा होता कि दोनो सोते-सोते उठकर कुए की तरफ भागने लगते, कि कहीं भाभी कुए पर तो नही गयी, कुए के पास भी भाभी को ना पाकर खेत कि ओर भागने लगते, कि भाभी खेत पर गयी होगी, लेकिन वहा भी अपने भाभी को ना पाकर दोनो कीसी पेड़ के नीचे बैठ कर खुब रोते और शाम होने पर घर आकर बिना कुछ खए पिए ही सो जाते, इससे दोनो का स्वास्थ भी खराब रहने लगा। अम्बीका कुछ जानकार हो गया था। और वो समझ चुका था कि अब भाभी वापस नही आएंगी लेकिन ये बात अभी तक रुचकी नही समझ पाई थी। बच्चो की ये हालत देख कर मालदेव ने दो महीने बाद ही गाँव वालों से बात करके अपनी दुसरी शादी कर ली धीरे-धीरे जब घर के हालात सुधरे तो मालदेव बाहरी उलझनों में फसता गया। गाँव में उसकी कुछ लोगो से झड़प हो गयी। लट्ठबाजी में निपुण होने के कारण मालदेव ने कई लोगो के सर फोड़ दिए। जिससे उसकी आधे गाँव से दुशमनी हो गयी और गाँव वालों ने मालदेव पर उसके खीलाफ मुकदमा कर दिया, उस झगड़े के बाद से, तो मालदेव की जिन्दगी ही बदल गयी। वो सारा दिन काम करता तब जाकर अपने घर में दिया जलाता और मुकदमा के तारीख की भरपाई करता। कुछ महीने बाद मालदेव की दुसरी पत्नी भी ये दूनीया छोड़कर चल बसी, जीससे मालदेव और भी परेसान रहने लगा। मुकदमा के तारीख को पुरा करने के लिए मालदेव ने धीरे-धीरे करके अपने घर के सामान और बर्तनो को बेचने लगा, मालदेव अब पहले की तरह स्वस्थ नही था। उसे चिन्ताए खाई जा रही थी, कि उसके दो छोटे भाई बहन है। उनकी परवरिस कौन करेगा लेकिन जो होनी को लिखा रहता है वो हो कर रहता है। कुछ ही दिनों में मालदेव भी अम्बीका और रुचकी को अकेला छोड़कर भगवान को प्यारा हो गया। अम्बीका अभी भी बहुत छोटा था, वह मात्र तेरह वर्ष का ही था। उसे अन्तीम संस्कार के नियम कानुन मालुम नहीं थे। यह देखकर गाँव वालों नें मालदेव का अन्तीम संस्कार करने में अम्बीेका की मदद की और उधर गाँव में तरह तरह की बाते हो रही थी। कि अभी तो दोनो बच्चे काफी छोटे है अपनी जिविका कैसे चलाएंगें। लेकिन किसी के दिल में भी इतना प्यार नही उमड़ा की वे उन्हे दो वक्त की रोटी दे सके। उस किसान का धर टुट के टुकड़ों में बीखर चूका था। कहा जाता है, कि जिस बन्दे पर परमात्मा का हाथ होता है उसका काल भी बालबाका नही कर सकता। अम्बीका अब अपनी जीविका चलाने के लिए और अपनी बहन को जीवीत रखने के लिए गाँव की गाय, भैंसो को जंगल में ले जाकर चराया करता और रोज़ उसे पाव छटाक दुध मील जाया करता, जिससे वे अपना पालन पोषण करते थे। इसी तरह अम्बीका अपने छोटी सी दुनिया के साथ खूश रहने लगा।अचानक एक दिन जाने कहा से अम्बीका के अन्दर भक्ति का एक तुफान सा आया जो उसे भ्क्ति के सागर में बहा ले गया। उस दिन के घटना के बाद से अम्बीका भगवान का बहुत बड़ा भक्त हो गया था। वह प्रति दिन चार घंटे सुबह-शाम भगवान के ध्यान में रहने , लगा अम्बीका पढ़ा लिखा ना होने के बावजुद भी संस्कृत के “लोकों का फर्राटे से पाठ करता, यह सब देख कर गाँव के लोग अचम्भा रह जाते और आपस में फूस-फूसा कर कहते कि अम्बीका के उपर जरुर कीसी भगवान की कृपा है। नही तो बताओं भला बीना पढे लिखे आदमी कभी संस्कृत तो क्या हिन्दी भी नही पढ पाएगा। अम्बीका पर जरुर कीसी भगवान का हाथ है। आसपास के सारे गंाव में यह बात फैल गयी, गाव के सारे लोग चकीत थे, बात और आग को फैलने में समय नही लगता यह बात वहा के राजा के खजान्ची काशीराम को पता चली काशीराम खुद ही एक भक्त प्रवृती के आदमी थे, उनको यह सुचना सूनकर बहूत अच्छा लगा और वो खुश होकर अम्बीका को पूजा करने केलिए एक चबूतरा बनवाए और उसे बुलवाकर कहा कि अब से तूम यही बैठ कर पूजा करना, अम्बीका को यह प्रस्ताव अच्छा लगा। उस दिन के बाद से अम्बीका वही जाकर पूजा करने लगा। समय के अनूसार अम्बीका कूछ मंत्रो की सीद्धीयॉ भी प्राप्त कर ली और वो अपने मंत्रो की सहायता से लोगो के कष्टों को हरने लगा, वह अपने लिए जीना ही भूल गया था। उसका सारा दिन पूजा पाठ और लोगो को झाड़ने फूकने में बीतने लगा। अपने आपको स्वस्थ होते देख लोग उसे मुट्ठी दो मुट्ठी अनाज दे दीया करते जिससे उसकी जीवीका चलती और अम्बीका कुछ ही दिनो में सारे गाँव में सोखा जी के नाम से प्रसीद्ध हो गया, समय को थामना कीसी के वस में न था। समय बीतता गया और अम्बीका जवान होता गया, शायद उसके परिजन अभी तक अगर जिवीत हाते तो अब तक उसकी भी शादी हो गयी होती। हालात से मारा बेचारा क्या करता, अपने जीवन रुपी नइया को पार लगाने के लिए उसने अपनी शादी की बात स्वंय ही चलाइ, तो गंाव वालों नें भी उसका साथ दिया और विवाह कराने में मदद भी की, उस दिन अम्बीका काफी खुश लग रहा था। सारे गाव वाले उसके खुशी में सरीक थे, अचानक अगले ही पल अम्बीका के खुशीयों को ग्रहण सा लग गया, और उसके चाचा जग्गू गुस्से से आग बबूला हुए वहा पहुच गए और झल्ला कर कहने लगे ´´अरे दुराचारी तु इस नीच कूल नीच जाति के लड़की के साथ व्याह कर रहा है। तुझे हमारे कुल,जाति का जरा भी ध्यान ना रहा जो तू इसे भ्रष्ट करता जा रहा है। जा आज से मैं तुम्हे कुजात करता हू, और हमारे कुल से तुम्हारा नाता तोड़ता हू।`` ये सब कह कर जग्गू उपना तौलीया फटकारते हुए वहा से चला जाता है। उस दिन से जग्गू की कही बाते अम्बीका के कानो में खटकने लगी और वो गूम सूम रहने लगा, तब गाँव वालों ने समझाया कि जो चाचा तुम्हारे दुख: में सरीक नही हुआ तो रीश्ता कैसा, तुम्हारा उसके साथ तो रीस्ता उसी समय टूट गया था जब उसने तुम्हारे दुख: को देख कर ही मुंह मोड़ लिया था। और जहाँ तक रहा जाति का सवाल वो तो कर्म पर निर्भर करता है।
गाँव वालो के समझाने पर अम्बीका ने चैन की “शास ली। और कुछ दिनो में ही अम्बीका का परिवार फलने फुलने लगा, ऐसा लग रहा था कि, मानों कितनें वर्षों बाद बसंत लौट कर आया है। उसके घर में बच्चो की कीलकारीयॉ गुजनें लगी, अम्बीका की पत्नी केतकुवारी ने तीन लड़कीयों (सीता, चंद्रमती, सुशीला) और दो लड़कों (दिनेश, उमेश ) को जन्म दीया। जिससे उनका खाली घर एक बार फीर से भर गया। अम्बीका ने अपने बहन का विवाह भी बड़े हर्षोंल्लास के साथ एक उचे घराने में किया, और वो खुशी-खुशी अपने ससूराल चली गयी।
दस वर्ष गुजर गए थे। अम्बीका के बच्चे भी जानकार हो गये थे। तो अम्बीका ने उन्हे पढ़ने के लिऐ वही के पास के प्राथमिक विद्यालय में दाखिला करवा दिया। क्यो कि वो तो जानता ही था, कि आने वाले समय में बिना पढ़े लिखे व्यक्तियों का गुजारा नही होगा। एक शाम की बात है। लगभग घड़ी में सात बजे होगें। ठंडी का महीना होने की वजह से जल्द ही अंधेरा हो गया था। अम्बीका लालटेन जलाए बच्चो से पढ़ाई के विषय में पूछ रहा था। कि अचानक किसी की आवाज आयी- सोखा जी……… ……. सोखा …………... जी………………. बड़ी लड़की सीता ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक आदमी हाथ जोड़े खड़ा है। और रोते-रोते सोखा माहाराज के बारे में पुछ रहा है, तो सीता ने इसारा करते हुए बताया `वहा बैठे है`, वो अन्जान व्यक्ति दौड़ कर अम्बीका के पैरो पर गीर कर रोने लगा, तब अम्बीका ने उसे उठाते हुए आश्चर्यता से पुछा, कौन हो भाई इस तरह मेरे पैर क्यो पकड़े हुए हो। वो अन्जान व्यक्ति विलख कर बोला, सोखा माहाराज आप महान हो, आपने कीतनो का कल्याण कीया है। अब मेंरे बच्चे को बचा लिजीए वो मर जाएगा, तब अम्बीका ने कहा देखो भाई मारने बचाने वाला मैं कौन होता हूं, बचाने वाला जीवन देने वाला तो वो है, परमात्मा! पहले तुम उनसे अपने बच्चे को बचाने का प्रार्थना करो, चलो मैं तो चलुंगा ही, जहा तक मुझसे हो सकेगा उपचार करुंगा। यह कहते हुए अम्बीका खुटी से कमीज उतार अपने कंन्धे पर रख कर उस अन्जान व्यक्ति के पीछे-पीछे चल दिया। जंगल से घीरे रास्ते में वो अन्जान व्यक्ति कोसो दुर चलता रहा, और अम्बीका भी उसके पीछे-पीछे चलता रहा। लगभग दो कोस चलने के बाद उस व्यक्ति का घर आया जहा पर उसका बिमार लड़का पड़ा था। जब अम्बीका ने उस बिमार लड़के को देखा तो उसके दात आपस में सटे हुए थे। जैसे किसी ने उन्हे गोद लगा कर चीपका दिया हो, यह सब देख कर अम्बीका समझ गया था कि उसे क्या हुआ है। और वो उस अन्जान व्यक्ति को तसल्ली देते हुए बोला जरा भी चीन्ता करने की जरुरत नही है। मैं अभी इसे ठीक करने की कोशीश करता हूं। यह कह कर बच्चे के उपर हाथ रख कर मंत्रो का उच्चारण करने लगा, जिससे बच्चे का दात धीरे धीरे खुलता गया, अपने बच्चे को स्वस्थ होते देख दोनो दम्पत्ती अम्बीका के पैर पकड़ लिए और कहने लगे, सोखा माहाराज अगर आप ना होते तो आज हमारा लाल जीवित ना रहता, यह सुन कर अम्बीका बोल उठा देखीए आप लोग मेंरा पैर ना पकड़े, जो हुआ है परमात्मा के कृपा से हुआ है। मै तो उसका ही बनाया हुआ एक बंदा हू, जो उसके आदेशो का पालन कर रहा है। आप लोग उस परमात्मा का पैर पकड़ीए वो आपका भला करेगा। यह कहते हुए अम्बीका अपने गाव की ओर लौट गया। समय गुजरते देरी ना लगा अम्बीका इसी तरह का उपकार करता रहा, और देख ते देख ते उसकी उम्र ढलती गयी और उसके बच्चो की उम्र बढती गयी, समय रहते अपने बेटीयों का व्याह कर उन्हे अपने घर से विदा कर दिया और अपने घर में दो बहुए ले आया जिससे उसके घर की हरीयाली और बढ गयी।
´´ यह कहते हुए राहुल के दादाजी चुप होजाते है। तो राहुल झुझला कर दादा जी से पुछता है, फीर क्या हुआ दादूण्ण्ण्ण्?
यह सुन कर राहुल के दादा जी हस कर बोले, फीर क्या होगा! फीर तुम लोग हुए और मेंरे आंगन में फीर से एक बार बच्चों की कीलकारीयां गुंजी। और मेंरा आंगन एक बार फीर से मस्त हो कर झुम उठा। यह सुन कर राहुल समझ चूका था की दादा जी अपने ही परिवार की व्यथा सुना रहे थे।
………………………………… क्रमशः
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। अच्छा लिखते हैं। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
Post a Comment