सुन री सखी मै क्या कहू
मै भावरा तू बावरी
जिस जगह देखू बाग में फूलो से सजी हर क्यारी
किस डाल पर मै लटकू ना समझ सका मै आनाड़ी
कोयल सी मीठी सब बोले
जब काम हो अपनी बारी
और कौवे सा करकस तब बोलें
जब आवे अपनी बारी
मैंने देखा सूरज को उगते
तो स्वर्ण किरण लागे प्यारी
वही सूरज जब ढलने जावे
तो दिखे रक्त से भरी क्यारी
सच है कया है झूठ है क्या
अपना कौन पराया क्या
मिथ्या क्या सच है क्या
मै सोच रहा बरी बरी
बस इतनी सी पहेली बुझादे तू
उलझी सी लड़ी सुलझादे तू
तू मेरी सखी मेधा प्यारी
ना जान सका ना समझ सका
अब तक भी, मै हूँ आनाड़ी
1 comment:
और कौवे सा करकस तब बोलें
जब आवे अपनी बारी
बहुत खूब.. बहुत बढ़िया लिखा
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